यूँ तो मेरे गावं सवाई और ककरी में बहुत सारे मंदिर हैं जैसा की मैंने पिछले लेख में भी बताया था,जब मैंने कोटा वाली माता के बारे में बताया था ,क्यूंकि ये देवी देवताओं की धरती हैं जिस में कुछ लोकल देवी देवता है जिन्हे लोगों के कुल देवी या कुल देवता कहा जाता है। उन्ही मंदिर में से ये एक सब से अनोखा रहस्यामयी और बहुत पौराणिक विचारधााराओं से जुड़ा हुआ ये नाग देवता जी का मंदिर है।
इस मंदिर के अगर हम इतिहास की बात करें तो कहा जाता है की ये चम्बा के राजा भूरी सिंह के समय का बना हुआ है। इस मंदिर में नाग जी की नक्काशी पत्थर और लकड़ी पे की गयी हुई है ,ऐसा परतीत होता जैसे सच में नाग राज लिपटे हुए हों.इसकी पूजा अर्चना का और देख रेख की जो जिम्मेवारी दी गयी हुई थी वो राणा जाति के लोगों को दी गयी हुई थी।लेकिन पूजा के लिए बाद में ब्राह्मण जात्ति की चाबरू जत्ति के परिवार को चुंना गया जिसे हम लोकल भाषा में चेला सम्बोधित करते हैं.तीन पीडियों से ये परिवार इस मंदिर की पूजा को संभाल रहा है। जब भी कोई त्योहार यहाँ होता है तो चेला रुपी प्रथा में सिर्फ इसी परिवार को सब से आगे रखा जाता है।
इस मंदिर की कुछ खास विशेषताएं है जो में साझा करना चाहता हूँ क्यूंकि कुछ प्रथा समय के अनुसार विलुप्त हो रही हैं जिन्हे में अपनी कुछ कोशिश के माध्यम से सुचारु रूप से चलाये रखना चाहता हु।
इस मंदिर में हर साल तीन से चार त्योहार मनाये जाते हैं जिसे हम जातर और जागरा का नाम देते हैं। सब से पहली जातर जब पेड़ पे फूल आने शुरू होते हैं बसंत के समय में तब मनाई जाती है. जो की नाग देवता जी को साल की पहली भेंट और आशीर्वाद लेने जाते ताकि समस्त साल सुख समृद्धि और खेती बाड़ी से भरपूर हो। नाग देवताजी को बारिश का देवता भी कहा जाता है। इसलिए जब कभी गावं में सूखा या अकाल पड़ता था तब समस्त जन मिल के इस मंदिर में अर्जी ले के आते थे और नाग देवता जी को प्रसन करने केलिए सारी रात कीर्तन किया जाता था और मानने की बात है की समय समय पे इस गावं में बारिश हो जाया करती थी। तब से ये प्रचलन चला हुआ की हर साल खेती बाड़ी की शुरूआत और फलों की शुरुआत से पहले इस मंदिर में आते हैं और उसके बाद एक बार जब फसल उगने और पकने का समय होता तब और एक बार जब सारी फसलें खेतों से निकाल ली जाती है। तो नाग राज जी को धन्यवाद रुपी तोहफे में इस जागरण का आयोजन किया जाता था
पहली जातर जौ फूलों के समय दी जाती थी उससे हम "फहलेर " के नाम से जानते हैं। इस मंदिर के प्रांगण में हर जातर और जागरे वाले दिन कबड्डी का आयोजन दोनों गावं के बीच में करवाया जाता है .पूजा अर्चना के बाद एक प्रथा यहाँ राक्षश को भगाने की की जाती है। कहा जाता है की जब साल के अंतिम दिनों में मंदिर के कपाट बंद होते तो उस समय राक्षश रुपी आत्मा यहाँ निवास करना शुरू करती है जिसे इस जातर के दिन भगाया जाता है। सभी लोग हाथ में प्रसाद लिए और सीटी ,पत्थर और खूब नारे हल्ला कर के और मंदिर के पीछे के दरवाजे की तरफ भगाया जाता है। ये भी कहा जाता है की अगर वो आत्मा जयादा दूर न जाये मंदिर से तो सारा साल आंधी तूफान का कहर पुरे गावं में रहता है और अगर चला जाये तो सभी फसलें और फल की खेती भरपूर होती है।
दूसरी खास विशेस्ता इस मंदिर के पानी की बौडी की है जो छोटा सा गोलाकार कुंड के रूप में है लेकिन नाग राज की मैहर से ये पानी कभी सूखता नहीं है और ना ही कभी ख़त्म होता है चाहे जितना मर्जी पानी इस्तेमाल कर लो। जातर और जागरे के समय खाना बनाने केलिए सारा पानी यही से लिया जाता परन्तु फिर भी ये छोटा सा कुंड कभी भी खाली नहीं होता।
मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही सुन्दर और शांति दायक है।
कहा जाता है की सैर की सक्रांद "संक्रांति " को नाग देवता जी इस गावं से पलायन कर के बासंदा गावं में चले जाते थे (सैर एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है सभी हिमाचलियों के लिए )और ढोलरु की संक्रांद "संक्रांति "को वपिस बासंदा वासी इन्हे वापिस ढोल नगाड़े और जातर के साथ इस मंदिर तक ले के आते थे उस दिन भी जागरण का आयोजन किया जाता था जिसमें सारी रात भजन कीर्तन गाया जाता था।लेकिन कुछ नरकीय काम की वजह से वापिस बासंदा गावं जाने से नाग देवता जी ने इंकार कर दिया. वहां के मंदिर में कुछ घटना घटित होने के बाद इस स्थान पे आने के लिए नाग जी ने इंकार कर दिया तब से नाग देवता जी अपने मूल मदिर में ही रहने लगे और तब से उस प्रथा को समाप्त कर दिया गया. जो बासंदा वासी ढोल नगाड़े क साथ जातर ले के मूल मंदिर में आया करते थे।
मेरा एक प्रयास शायद इन सभी प्रथाओं को वापिस ला सके और फिर से वही आस्था जाग जाये। इसी विश्वास पे में अपने गावं के हर मंदिर के ऊपर उनकी विशेषताओं को उजागर करने का प्रयास कर रहा हु। और इन्ही विशेषताओं के माध्यम से में अपने गावं का पर्यटन भी बढ़ाना चाहता हूँ। इस गावं में पर्यटन बढ़ाने के लिए बहुत क्षमता है। जिसे मैं राष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलवाना चाहता हूँ।
शिव राज 991536742
पीएचडी शोधकर्ता (GNA UNIVERSITY)
गावं स्वाई (भरमौर ,चम्बा, हिमाचल)